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कुफ्र / महेन्द्र भटनागर

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लाश
जल रही
मसान में
किसी ग़रीब की,
बद-नसीब की !

कुटुम्ब
स्तब्ध...सन्न,
विप्र अति प्रसन्न !
मृत्यु-भोज
ऐश-मौज !

किन्तु
नौजवान आज
ढोंग सब बहा
धता बता रहा,
पुरोहिती
मिटा रहा,
बदल रहा गरुड़-पुराण,
प्रेत-कर्म का विधान।

विप्र खिन्न,
चीखता
कलियुगी... कलियुगी !

वस्तुतः
यही
नये समाज की
विराट सुगबुगी !