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कुमति पकड़ै कुसंग / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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(जंगल के दृश्य। एक दिशोॅ सें एक बड़ोॅ रँ उल्लू उछलतें आवै छै आरो डैनोॅ खूब ऊँचे-नीचेॅ करतें दर्शक सिनी सें बोलै छै)

उल्लू: हँसोॅ-हँसोॅ सब मिटेॅ व्यथा
सुनोॅ सुनैयौं एक कथा
बहुत दूर एक जंगल में
ताकतवर आपनोॅ बल में
बाघ छेलै, टहलै जंगल
मारी पशु मनावै मंगल
जखनी रात हुवै, ऊ जाय
माँदोॅ में जाय केॅ सुस्ताय
माँद पहाड़ी में बनलोॅ
सोवै वै में ऊ तनलोॅ

जेकरोॅ द्वार के प्रहरी होय
जागै गीदड़-ढुकै नै कोय
के पूछै छै गीदड़ केॅ
पूछै छै बस सब्बड़ केॅ
जंगल में तेॅ गीदड़े-गीदड़
ओकरौ में कुछ बरियो अक्खड़
से ई गीदड़ हारी केॅ
प्रहरी बनी दुआरी के
बाघोॅ लेॅ जागै दिन-रात
खबर करै सब वन रोॅ बात।

(मंच पर थोड़ोॅ देर लेली अन्हार फैलै छै, फेनू प्रकाश। प्रकाश में जंगल बीच एक बड़ोॅ रँ माँद दिखावै छै, जेकरोॅ द्वार पर एक टा कमजोर नाँखी गीदड़ बैठलोॅ न्निें-हुन्नें देखी रहलोॅ छै। माँद सें एक बाघ दू-तीन बार बाहर निकलै छै आरो मंच पर चक्कर लगाय, घूमी-फिर फेनू माँदोॅ में घुसी जाय छै। बाघ के निकलतेॅ गीदड़ भी हिन्नें-हुन्नें करै छै, फेनू अपना जग्घा पर आवी केॅ बैठी जाय। बाघ के माँदी मंे धुसत्हैं उल्लू फेनू आवै छै आरो डैनोॅ फैलाय-फैलाय दर्शक सिनी सें कहै छै)

उल्लू: गीदड़ सें बाघें ई जानी
आवी रहलोॅ छै हाथी
माँदोॅ सें बाहर ऐलै
हाथी सें ऊ जाय भिड़लै
हाथियो छेलै पर जब्बड़
जतना बाघ छेलै जब्बड़
जतना बाघ छेलै सब्बड़
लड़लै दोनों कै दिन-रात
करै एक दुसरा पर घात

आखिर में होय हाथी पस्त
खाय केॅ कमजोरी सें गश्त
गिरलै नीचेॅ गाछी रङ
हवा में जेना माँछी रङ
पर बाघो रोॅ हालत माँत
तोड़ी लेलकै दू-तीन दाँत।

(बात कही केॅ उल्लू एक दिश होय जाय छै। एक दिशा सें चिग्घाड़ करतें एक हाथी आवै छै, जेकरा देखत्हैं माँदी सें निकली बाघ झपटी पड़ै छै। दोनों में खूब लड़ाय आरो उठा-पटक होय छै। गीदड़ भी हिन्नें-हुन्नें दौड़तें रहै छै। आखिर में हाथी आरो बाघ पस्त होय केॅ बैठी रहै छै। बाघ लंगड़ैतें माँदी में आरो हाथी भी लंगडै़तें जंगल दिश निकली जाय छै। गीदड़ फेनू दुआरी पर बैठी रहै छै, तबेॅ उल्लू आवै छै आरो डैना केॅ फैलाय-फैलाय कहेॅ लागै छै)

उल्लू: होयकेॅ बैठलोॅ नांगड़ोॅ घोॅर
कै दिन रहलै दरद सें तोॅर
आखिर बोललै व्याकुल होय।

(बाघ माँदी सें बाहर निकलै छै आरो सियार सें कहै छै)

बाघ: गीदड़ बुद्धि लगावें कोय
भूख सें हमरोॅ हाल बेहाल
जिनगी लागै छै जंजाल
कोय शिकारी तेॅ मारी लान
भूख सें उल्टै हमरोॅ जान।

(उल्लू दर्शक के सामना में आवै छै आरो समझाय के मुद्रा में सुनावेॅ लागै छै)

उल्लू: मालिक रोॅ सब बात सुनी
मन-मन लेलकै माथ धुनी
ओकरोॅ की औकात भला
गीदड़ के की जात भला
बाघोॅ लेॅ ऊ करेॅ शिकार
ठोकी लेलकै वैं कप्पार।

(कहतें-कहतें सामना सें हटी जाय छै)

गीदड़: यै बातोॅ लेॅ चिन्ता की
अभी रुकोॅ हमरोॅ स्वामी
लै आवै छौं अभी शिकार
लगतै घंटा दू या चार।

(बाघ माँद में घुसी जाय छै आरो गीदड़ मंच पर घूमॅे लागै छै। तखनिये उल्लू मंच के आगू आवै छै आरो फेनू दर्शक सिनी केॅ सुनाय-सुनाय केॅ बोलेॅ लागै छै)

उल्लू: ई बोली गीदड़ चललै
संयोगोॅ सें गदहा मिललै
गदहा देखी खुशी अपार
मोटोॅ ताजा गजब शिकार
गीदड़ मूँ में ऐलै लार
चलतै कै दिन भोज अपार
लेकिन मारलोॅ केना जाय
मन में सोचै कोय उपाय
आखिर आवी खूब नगीच
आपनोॅ मूड़ी करी केॅ नीच
बोललै-मामू केॅ परनाम।

(मंच पर एक दिशोॅ सें एकटा गदहा आवै छै, जेकरा देखथैं गीदड़ ओकरोॅ नगीच पहुँची जाय छै आरो बोलै छै)

गीदड़: मामू जी हमरोॅ परनाम
केना कटै छौं भोरे-शाम।

गदहा: अरे अरे रे भैगना रे
ऐले हमरोॅ ऐंगना रे
सुन्दर लागै, सुन्दर मॉेन
भैंगना सें की बढ़ी केॅ धोॅन
मतरकि हमरोॅ भोरे-शाम
की बतलावौं राम, राम, राम
गठरी लादोॅ भोरे-भोर
झब-झब भागौं नद्दी ओर
फेनू ऊ गठरी लेलेॅ
घर पहुँचावौं पीठी ढोलेॅ
खाय लेॅ आपनोॅ खोजौं घाँस
एत्ते भारी जिनगी साँस।


गीदड़: मामा आबेॅ चिन्ता नै
हम्में जहाँ छी, चलोॅ वहैं
की घासॉे के खेत वहाँ
नदी के शीतल सोत वहाँ
गधियो रहै छै तीन, तीन, तीन
जेकरा नै आँखी में नीन
चाहै छै सब बिहा करौं
मिली-जुली सब घास चरौं
मामू जी जों चलोॅ वहाँ
जे सुख मिलतौं, यहाँ कहाँ?

(गदहा गीदड़ के पीछू-पीछू मंच पर चलतें रहै छै। तखनिये उल्लू दर्शक सम्मुख आवी केॅ खाड़ोॅ होय जाय छै आरो कहॅे लागै छै)

उल्लू: गदहां सोची मन में बात
बीहा सब गदही के साथ
हामी कैलकै, चललै संग
गीदड़ मस्त, जों पीलॅे भंग
मन-मन देवोॅ केॅ सुमरै
मूँ में जीहोॅ केॅ लारै।

(मंच पर एक क्षण लेली अंधकार होय छै, फेनू प्रकाश के बीच बाघ के माँद दिखाय पड़ै छै, जेकरोॅ बगलोॅ में गदहा आरो गीदड़)

उल्लू: आखिर ऐलै माँदोॅ तांय
बाघो गरजी उठलै धांय

(बाघ केॅ देखथैं गदहा ढेंचू-ढेंचू करी केॅ उल्टे पाँव भागी जाय छै। बाघ आरो गीदड़ हक्का-बक्का होय एक-दूसरा के देखै छै। फेनू बाघ सें गीदड़ कहना शुरू करै छै)

गीदड़: मालिक, सब मनसुआ गेलै
सोचौ ई सब केना भेलै
लेतियौ काम जों साहस सें
भागी जैतियै की बस सें
लेकिन तोंय घबड़ावोॅ नै
आरो जों उमतावोॅ नै
तेॅ देखियौं दोबारा जाय
ईश्वर होय जाय कहीं सहाय।

(ई कही केॅ गीदड़ एक दिश चललॉे जाय छै आरो बाघ आपनोॅ माँद में घुसी जाय छै। उल्लू सामना में आवी केॅ उछली-उछली कहै छै)

उल्लू: ई बोली गीदड़ चललै
फेनू वही गदहा मिललै
देखी बोललै ढेंचू लै।

(उल्लू के एक दिश होथैं गदहा आरो गीदड़ दू विपरीत दिशा सें मंचोॅ पर आवै छै। गीदड़ केॅ देखी गदहा बोलना शुरू करै छै)

गदहा: ठिक्के नी ई लोग कहै
जोॅर जमाय आ भैंगना तीन
लिएॅ न दीएॅ केकरौ नीन
हाय रे भैगना, हमरोॅ जान
लेतियैं तोहें पल में प्राण
ऊ तेॅ भागलौं जान बचाय
नै तेॅ बाघें लेतियोॅ खाय।

गीदड़: मामू करलौ सब चौपट
बिना समझले कुछुवो झट
बाघ छेलै कि गदही ऊ
भागलौ जे करलेॅ ढेंचू
ऐतें आपनोॅ दिश देखी
बल्हौं तोंय उठलौ रेंकी
तोरा लागलौं बाघ रहेॅ
जे होना छै-हुवेॅ वहेॅ
आपनोॅ-आपनोॅ भाग यहाँ
विधि वाम तेॅ भाग कहाँ
मामू हेने यहीं रहोॅ
असकल्ले में भूख सहोॅ
या अभियो छै समय कहोॅ।

(गीदड़ के बात सुनी केॅ गदहा दू-तीन बार मूड़ी डोलावै छै आरो फेनू बोलना शुरू करै छै)

गदहा: भैगना, भूल बड़ी होलोॅ
आबेॅ कोय रस्ता खोलोॅ
जैसें ब्याह रचावौं जाय
नै कल-अखनी, अभिये, आय।

गीदड़: देर करोॅ नै मामू आवोॅ
ज्यादा नै मन में कुछ भावोॅ
गदही सबठो शुद्धी छै
मानी जैैतै-बुद्धी छै।

(मंच पर गीदड़ आगू-आगू घूमेॅ लागै छै आरो गदहा ओकरोॅ पीछू-पीछू घूमै छै। उल्लू दर्शक के सामना में आवी केॅ कुल्होॅ मटकाय-मटकाय केॅ बोलै छै)

उल्लू: गीदड़ जमैलकै आपनोॅ चाल
गदहा पर गिरलै सौ जाल
अबकी बाघो होय केॅ चेत
बैठलोॅ छेलै बोॅल समेत
एकदम चुप टकटकी लगाय
देखी केॅ कोय बोलेॅ ‘धाय’
हुन्नें गदहा गद-गद चाल
देलेॅ गोड़ सें ठुक-ठुक ताल
ऐलैं वहाँ जहाँ कि माँद
बाघें लेलकै होन्हें फाँद।

(आरो हठाते उल्लू एक दिश होय जाय छै। पीछू मंच पर माँद से निकली बाघ के गदहा पर पटवोॅ दर्शक देखै छै आरो देखै छै गदहा चित्त छै, जे पर बैठी केॅ बाघ गुर्राय रहलोॅ छै। गीदड़ घूमी-घुमी केॅ ठिठियाय रहलोॅ छै। उल्लू दर्शक के आगू आवै छै आरो व्यंग्य भरलोॅ आवाज में बोलै छै)

उल्लू: एक्के थाप में गदहा ढेर
लागलै एक्को पल नै देर
मुस्कै गीदड़ भैगना लाल
ऐलै बिना जें ऐल्है काल
जे दुष्टोॅ केॅ बूझै सन्त
ओकरोॅ भैया हेने अंत।