भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुम्भकर्ण वध / राघव शुक्ल
Kavita Kosh से
पुत्र मृत्यु का समाचार सुन, क्रोध दशानन को फिर आया
समर जीतने की आशा से, कुंभकरण को आज जगाया
खूब हिलाया खूब डुलाया
ढोल नगाड़े खूब बजाए
पहले मदिरा खूब पिलाई
उस पर आमिष भोग छकाए
कदम रखा जो कुंभकर्ण ने, धरती डोली नभ थर्राया
धूल लगी आकाश चूमने
युद्धभूमि में आंधी आई
चमचम बिजली लगी कड़कने
क्षण भर में ही बदली छाई
वानर सेना लगी भागने, ऐसा कुछ उत्पात मचाया
वह पहाड़ सा शूरवीर था
कोई उस पर पार न पाया
मन ही मन में प्रभु मुस्काए
एक बाण से काटी माया
भंग किया अभिमान कुंभ का, महाबली को मार गिराया