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कुल्हाड़ियाँ / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
कुदाल और हँसिये की तरह नहीं होता
कुल्हाड़ियों का दैनिक इस्तेमाल
वे कभी-कभार काम में लाई जाती हैं
जब मैं किसी के कन्धे पर कुल्हाड़ियों को
जाते हुए देखता हूँ तो लगता है कि
पेड़ों पर मुसीबत आने वाली है
कुल्हाड़ियाँ घर से बाहर निकल कर
कोई न कोई हादसा जरूर करती हैं
उनकी मार से नहीं बचती हैं डालियाँ
छोटे- मोटे पेड़-पौधे उन्हें देख कर
भय से कांपने लगते हैं
कुल्हाड़ियां सिर्फ पेड़ों को नहीं काटती
आदमी के कन्धों को लहुलुहान कर देती हैं
वे कंधे पर अंगोछे की जगह को काबिज
कर लेती हैं
कुल्हाड़ियों को कई हत्याओं में शामिल
पाया गया है
वे सिर्फ़ पेड़ों की नहीं आदमियों की हत्या
करती हैं