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कुल्हाड़ी वृक्ष को काटते-काटते / वीरेन्द्र कुमार जैन

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कुल्हाड़ी वृक्ष को काटते-काटते
ठिठक गई :
गिर पड़ी...
हाय, उसने अपने ही को काट डाला!
सारा जंगल उसमें पसीज उठा,
वह चल पड़ी अरण्यानियों के पार :
देखते-देखते पारान्तर में
अचिन्ह हो गई।

एक ऊर्ध्वमूल वट-वृक्ष
शून्य में उग आया :
सारे वृक्ष उसकी शाखाओं में झूल गए!