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कुल्हाड़ी / कविता पनिया
Kavita Kosh से
हम वन में उगे वृक्ष हैं
कुछ वृक्ष तब्दील हो गए हैं कुल्हाड़ी में
अब काट रहे हैं
साथ साथ पले बढ़े साथियों को
जब निंद्रा से जागेगा जंगल
पेड़ चलने लगेंगे
फिर कुल्हाड़ियाँ भागेंगी और पेड़ दौड़ेंगे
कुल्हाड़ी के हत्थे पर लगा लकड़ी का हिस्सा
जिस पर लगी जंग पास बहती नदी धोएगी
पश्चाताप का यह पल कुल्हाड़ी को प्रेरित करेगा नव निर्माण के लिए
जहाँ सृजन के नए बीज चमकगे