भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुल लाज जंजीरन सोँ जकड़्यो जुलमी तऊ ऊधम ठानत है / परमेस

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुल लाज जंजीरन सोँ जकड़्यो जुलमी तऊ ऊधम ठानत है ।
तन मैन महावत एड़ के आँकुस ताहू की आनि न आनत है ।
झुकि झूमि झुकै उझकै न रुकै परमेस जू जोग न जानत है ।
पिय रावरो रूप बिलोके बिना मन मेरो मतँग न मानत है ।


परमेस का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।