भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुशल प्रशासक / मिथिलेश श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दाढ़ी बनाता है
मूछों के सफ़ेद बाल
जड़ से कतर देता है
नाख़ून काटता है
जवान दिखता है
कुशल प्रशासक

जूते के कसे फीते
उसकी दृढ़ता के प्रतीक हैं जिन्हें
उसका अफ़सर पसन्द करता है

अपने प्रसन्न होने का उसका यक़ीन
तब तक बना रहता है
जब तक
उसके कपड़े की क्रीज बनी रहती है जिसे
शाम तक बनाए रखने के लिए
वह दिन भर जुटा रहता है ।

शहर के हर उत्सव में बुलाया जाना
वह पसन्द करता है

वह पसन्द करता है
लोग उससे डरे नहीं
बस उसके इशारे को समझें
वह बचता रहता है
ख़ुशामद में लगे लोगों से

उसे अच्छा लगता है
अपने घरेलू उत्सवों में
शहर के लोगों का अपनी औकात के अनुसार
शरीक होना

कुशल प्रशासक
अपनी आँखें नचाकर पूरा कर लेता है
अपनी चाल
और स्वर के धीमेपन को ।