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कुशीनगर में छबि सज नवरी / धरीक्षण मिश्र

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विद्यालय के भवन सुहावन । बौद्ध तीर्थ के पुरवा पावन ।
देवरिया से कवि सब आइल । पूरा उन्चासे कम बावन ।
एक आध के कमी परे त हम के एगो गनि लीं अवरी ।
                           कुशीनगर में छबि सज नवरी ॥1॥
अवर कविन के कविता होई । षट रस के ऊ रही रसोई ।
तींत मीठ जब जइसन लागी । श्रोता लोग हँसी भा रोयी ।
ऊपर से हमार कविताई दालि भात पर रही अदवरी ।
                           कुशीनगर में छबि सज नवरी ॥2॥
केहु कवि अल्प दृष्टि अपनायी । दूर दृष्टि से ना लखि पायी ।
केहु अतिसार ग्रहणिये होईं । केहु मिल जुल पित के दुख रोई।
केहु के अन्तरदाह सतायी । आधा सीसी काम न आयी ।
लीटर पी टर हो के गायी । उहे अनिद्रा सब पर लायी।
केहु का जल से घंट सिंचाई । यदि सुन फिलिया तनिक बुझाई ।
आ बोली मुँह से ना बहिराई । श्रोता तब न सकी सुन बहरी ।
जर से पहिला जर मिट जाई । ज्वार कविन का मन में आई ।
ट्रेन धरे खातिर सब धवरी । कुशीनगर में छबि सज नवरी ॥3॥
केहु कवि हथिया महा भयावन । केहु कवि मघा मेघ झरि लावन ।
श्रोता रूप पपीहा खातिर । कुछ कवि स्वाती बूँद सुहावन ।
यदि बढ़ियाँ संयोग तुलाई । मोती के दरसन हो जाई ।
भोजपुरी खातिर मन तरसी । चन्द्रशेखर के द्रोपदी परसी ।
केहु पुख सहित वाण कवि आई । ओकरा अस नी के भ्रम छाई ।
कि अदरे में कमी बुझायी । खीसिन मिरगी सिरा कँपायी ।
बरस परी आ गरज सुनायी । केहु भर नीके चख जल लायी ।
पूर्वा पर जे ना चित राखी । ए कृति का ऊपर का भाखी।
केहु उतरा के अर्थ लगायी। सगरो छिन भिन करी कमायी ।
हम बसन्त के बनब बनवरी । कुशीनगर में छबि सज नवरी ॥4॥
केहु अनुराधा मँगलकारी । आ के पूरा मँच सँवारी ।
सँचालक कवि शाखा आपन । करिहें यदि निशंक संस्थापन ।
नीमन श्रोता लोग परायी । सभा न उहाँ पुनर्वस पायी ।
केतनो केहु करी चिरौरी । कुशीनगर में छबि सज नवरी ॥5॥
श्रवण मूल आशय अपनायी । उहे राति में घर से आयी ।
सम्मेलन यदि उतरी सही । रस से अभिजित ना केहु रही ।
बुद्धि घनिष्ठा पाले परीं । त शतभीखा से पेट न भरी ।
रहनि ज्येष्ठा ना यदि आयी । त डरे वतीरा ना रहि पायी ।
अवरी सब का देखी देखा । हम ना लिखबि कविता अस लेखा ।
बनबि मँच पर तीस फरवरी । कुशीनगर में छबि सज नवरी ॥6॥
ऋतु वसन्त के हवे प्रथम दिन । सरस्वती देवी के पूजन ।
छबिस तीस वाली गोष्ठिन के, एही में बाटे आयोजन ।
आज मार के जन्म दिवस ह । राष्ट्रपिता स्वर्गमन दिवस ह ।
आज निराला पुण्य जयन्ती । श्रद्धान्जलि उनहूँ का सन्ती ।
कई पर्व के नाधल दँवरी । कुशीनगर में छबि सज नवरी ॥7॥