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कुसल-छेम सब अच्छा? / चंद्रदेव यादव

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का हो रमई,
आवा आवा
कब अइला ह?
अउर बतावा
कुसल-छेम सब अच्छा?
अच्छा अच्छा!

गाँव-जवार क मनई कइसे?
छोटका-बड़का, ठाकुर-बाभन
नाऊ, धोबी, बरई कइसे?
दादी, आजी, माई कइसे?
कइसे बाटें लड़िका बच्चा?

बिटिया क सादी कइला ह?
दस हजार करजा कइला ह?
बर अबहीं बेरोजगार ह?
का कहला ह
ससुरा त एकदम गँवार ह?
दूगो भाई कलरक हउवें
आपन आपन देखत हउवें?
ई त बहुत बुरा कइला ह
सच्चों तू खा गइला गच्चा l

चकबंदी क हाल बतावा
परधनवाँ क चाल बतावा
गाँव समाज के हड़पे खातिर
कहाँ बिछवले जाल? बतावा
परधनवाँ त घोंइस हउवे
बाबा कहेलं सोंईस हउवे,
के-के मालामाल भइल?
केकर घर पैमाल भइल?
का कहला ह फिर से बोला
नथुनी-झुलनी बियहुतिन क
चौपाले के भेंट चढ़ गइल?
बटुर गइल भोला क खेती?
जोखू पउलैं ढेर-स रेती?
सामू पाड़े क चानी ह
बित्ता भर ऊँचा पानी ह?
लड़िका दसवीं फेल हो गइल
बाकी ढेर-स मिलल बरच्छा?

" पिछले महिन्ना गजब हो गइल
फउदरवा क कतल हो गइल l
बात दरअसल ई हउवे कि
बात दरअसल कुछ ना हउवे
हुईं-टुईं में बात बढ़ गइल
पुसपी-परकसवा के लेके
फउदरवा कइ दिहल ठिठोली
बस एतना मा चल गइल गोली l
अब त पुसपी के परकसवा
सरेआम रखले ह,
के न जानत ई कुल बतिया
के के न देखल ह!
परकसवा बन गइल चउधिरी
ओही क सब लेत ह पच्छा!

" झुरिया क देखा मनमानी
जमुना के दुआर क पानी
रोकलै सीना ठोंक हरामी l
झुरिया क दावा हउवे कि
ई जमीन त ओकर हउवे
जमुना आपन बही देखउलैं
झुरिया बोलल फरजी हउवे l
ओकर घर त ताल हो गइल
एक ओर क पाख गिर गइल
गाँव-पूर त मजा लेत ह
परेसान जमुना क परानी l
पंचैती में गुंडा अइलैं
परधनवाँ कहि के आइल ना
पंचैती में फरियाइल ना
तोहईं बूझा गलती केकर
के झूठा ह, के ह सच्चा?

" मालुम ना ई कवन जोजना
एकर कउनो खोज-खबर ना
ठीकेदारान के बनि आइल
ई कुल खेला सरकारी ह
ओके के समझावे वाला
ऊ त एकदम्मै अन्हराइल,
बेफालतू नद्दी-नद्दी
मेड़ा बन्हल कि बाढ़ क पानी
फइले ना, अब का हम बोलीं
पहिले बारिस में भहराइल l
एके तनिको अक्किल नाहीं
पानी के धारा के कइसे
मेडा-मेड़ी करिहैं रच्छा?
 
" पलटनिहाँ लड़िका मुसया क
मर गइल, मुसया क
कर्हियाँव टूटी गइल
मुसया रोवै' हाय गोसइयाँ
अब के देई पिंडा-पानी
कइसे पार करब बैतरनी? '
फिर पिंसिन क चिंता लागल
सूतल पाप मने क जागल
ओकर मेहर आन्हर-भेभर
ऊ का जाने दुनियादारी!
सुनै मरद क बदलल बोली
हँसी-ठिठोली अउर चिकारी l
मुसया पतोहिया से लस लगा के
आपन सूतल भाग जगउलै,
ओकरे तन से लड़िका जनमल
सुन्नर-मुन्नर, चान-स उज्जर l
बात बिरदरी में जब फइलल
मुसया लीपापोती कइलै l
पंच कहैं ई घोर अनेत ह
ई कुल बात कयास से बहरे
केहू के ना आज घरी तक
जनमल डेढ़ बरिस पर लइका l
थोड़-बहुत त अन्हरी-धुन्हरी
चलि जाई, अब तोहीं बतावा
कइसे केहू जीअत मछरी घोंटी
कइसे बात गरे से उतरी?
कइलै ओके पंच कुजतिहा l
मुसया पंचन के गोड़े पर
पगरी ध के रोउलै-धोउलै
तब जाके ई ममिला सलटल l
हँसा नाहिं, ई एकदम सच ह
ससुर भतार पतोहिया मेहर
ससुर भरोसे ऊ लड़िकोहर,
नया जमाना, बात नई ह
केके केके गंगा झोंकबा
केकर केकर लेबा परिच्छा?

" जनता पल्टीबाज हो गइल
मेल-मोहबत कहाँ खो गइल!
केहु कंगरेसी, केहु भजपाई
बाप-पूत में भइल बुराई
जेके देखा उहै उधाइल l
बुरा जमाना बिकट समय ह
रीत-नीत क उठ गेल अर्थी
होत जात अदमीयत सपना l
भाँत-भाँत के झंडा लेके
सबही आपन तोप चलावे
सब दुसरे के बुरा बतावे l
पानी सिर से हो गइल ऊपर
छोटकन क जीअब भइल दूभर l
गोलबंदी में गाँव बँटाइल
दुइ पल्टी के बीच में के ना
बेमतलब घुन नाईं पिसाइल l
हम पुछली नेताजी से, ई
जवन हवा चल पड़ल गाँव में
एकरे बिख से सब मर जाई l
ऊ कहलैं तपाक से' जे कुछ
होत हवै, ऊ कुल ह अच्छा l'
 
" जेतना पढ़वइया लड़िका हँ
छोड़ पढाई भइलैं अवारा
ओनकर कइसे होई गुजारा?
देखा बिकरमा के नाती के
एम्मे-बी.ए. कइके बइठल
खेती में ना दीदा लागे
नेता-परेता के पीछे भागे
ओसे अच्छा लोकया हउवे
लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर साला
ओकर बाप दलिद्दर रहलैं
बाकी अब न कउनो कसाला
जाके बम्मईं कमा-धमा के
पइसा से मजगूत हो गइल l
गाँव-पूर में जब आवेला
सीना तान उतान चलेला
पढ़वइयन के ताना मारे
सबके सम्हने सेखी बघारे l
लड़िकन के अब पढ़े-लिखे में
मन ना लागे,
बाप-मतारी कुछ ना बोलें
ओनके मन में खाली पइसा
एही से दिल्ली-कलकत्ता
भाग-भाग के जालैं लइका
करैं मजूरी, खींचैं ठेला
रेक्सा खींचत जात जवानी
केतना ससुरा परदेसे में
आके बनलैं चोर-उचक्का l"

अउर कहा कतवरुआ कइसे?
जइसे पहिले, अबहीं वोइसे?
सच्चों ऊ ह बहुत हरामी
सरसों में भंड़भांड़ मिलावे
डलडा के ऊ घीव बतावे
डंडी मारे बइठ दुकानी l
सुनली ऊ लहसंस पाइ गइल
चिन्नी-तेल बिलेक करेला
उपरैं ऊपर चोरी-चोरी
साहेब-सूबा के जेब भरेला?
येही के दादा बोलेलँ
एक त तितलउकी अ दुसरे
चढ़ल नीब के डार l

" हाँ भइया, अब कुछ जिन पूछा
कासकार बेमउत मरत हँ
नकली खाद, बीज कुल नकली
पता नहीं कहवाँ से लिआ के
बेचै धक्कापेल मचा के l
रुपिया में ऊ तीन अठन्नी
रोज भँजावै
काने-मूँड़े तेल डाल के
जनता अपने राह चलत ह
बाकी ईहो जान ल्य भइया
सूम क धन सैतानै खाई
कतवरुआ अब जज्ञ कराई l
जज्ञ में सुमिरन पाँड़े ओके
अइसन मुँड़िहैं, ऊहै जानी
आई-बाई गुम हो जाई l"

ना हो रमई, तू ना बुझला
ऊ पापी से धरमी बनके
अपने लिलार क अकलंक पोंछी
बइठ के अपने ऊँचे आसन
सगरो गाँव के देई सिच्छा l

" छोटके ओट में जगया अबकी
निरदल हो के खड़ा हो गइल
ओकर कद कुछ बड़ा हो गइल l
बड़का-छोटका सब समझवलै
बाकी ऊ न कदम हटवले
अब केहू के कुछ ना बूझे
बड़की गोल के कुछ ना सूझे
ऊहो पट्ठा हिम्मतवाला
बोलल—जेतना भइल घोटाला
अब जगया से पड़ल ह पाला
सबकर करनी करब उजागर
खोलब सबकर चिट्ठा कच्चा l"

कुसम-छेम सब अच्छा?
अउर बतावा
हीत-मीत कुल कइसे बाटें?
मजे में हउवैं लड़िका–बच्चा?