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कुहासौ छँट गयौ और उजीतौ ह्वै गयौ ऐ / नवीन सी. चतुर्वेदी

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कुहासौ छँट गयौ और, उजीतौ ह्वै गयौ ऐ।
गगनचर चल गगन कूँ, सबेरौ ह्वै गयौ ऐ॥

हतो बौ इक जमानौ, कह्यौ कर्त्वो जमानौ।
चलौ जमना किनारें - सबेरौ ह्वै गयौ ऐ॥

बौ रातन की पढ़ाई, और अम्मा की हिदायत।
अरे तनि सोय लै रे - सबेरौ ह्वै गयौ ऐ॥

अगल-बगलन छतन सूँ, कहाँ सुनिबौ मिलै अब।
कि अब जामन दै बैरी - सबेरौ ह्वै गयौ ऐ॥

कहूँ जामन की जल्दी, कहूँ जा बात कौ गम।
निसा उतरी ऊ नाँय और, सबेरौ ह्वै गयौ ऐ॥

न कुकड़ूँ-कूँ भई और, न जल झरत्वै हबा सूँ।
तौ फिर हम कैसें मानें - सबेरौ ह्वै गयौ ॥

न जानें चौं बौ औघड़, हमन पै पिल पर्यौ’तो।
कह्यौ जैसें ई बा सूँ - सबेरौ ह्वै गयौ ऐ॥