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कुहेसक अन्हार / अग्निपुष्प
Kavita Kosh से
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नदीक एक कछेड़मे
थमकल तों नाह आ
दोसर कछेड़ पड़ल हम पतवार
हमरा तोरा बीचमे
पसरल अइ कुहेसक अन्हार
जतबे लागीच देख’ चाहैत छी
हम अपन दुनू हाथ
ततबे फराइ अइ
जेना हो बरेड़ी आ चिनवार,
अन्तहीन यात्राक
निस्तब्ध सड़क हम
आ तों क्रूर सवार
कतबो ढेहु उठए
नइं भेटल-ए सागरक तलमे
नेहसँ गढ़ल तोहर आकार
राजमुकुटक उच्चाकांक्षी तों
आ हम सिंहासनक पहरेदार
साज ओहिना सजौल अइ
मात्र टूटल अइ संवादक सितार
आसक पलाश हम
आ तों ऊसर पहाड़