भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कूंडियै पाणी सिड़ ज्यासी / भंवर कसाना
Kavita Kosh से
कूंडियै पाणी सिड़ ज्यासी
मोह सूं मिमता जिड़ ज्यासी
मती बण मूंडां सूं लपचेड़
कायदो मांदो पड़ ज्यासी।
थोड़ो सो आंतरो कर राख
भीड़ में भीड़ी भिड़ ज्यासी।
मती कर पचबा री तजबी
जहर री जात बिगड़ ज्यासी
बांध मत पीक रा पाडा
मूरत री जड़ां उपड़ ज्यासी
काण रो कांकरो मत खोल
ताकड़ी-धरण उघड़ ज्यासी