भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कूए-अदू में रखिये ज़रा होशे-नक़्शे-पा / मेला राम 'वफ़ा'
Kavita Kosh से
कूए-अदू में रखिये ज़रा होशे-नक़्शे-पा
हो जाएं नक़्शे-पा न हम-आगोशे नक़्शे-पा
रहता है आप का निगराँ कौन हर क़दम
किस के हैं नक़्शे-दीदा ये हमदोशे-नक़्शे-पा
पर्दा तुम्हारी पर्दा-नशीनी का उठ गया
कुछ कहने की हैं वा लबे-ख़ामोशे-नक़्शे-पा
उफ्तादगाने-ख़ाक की मिट्टी ख़राब है
जुज़ गर्दे-राह कुछ नहीं तन पोशे-नक़्शे-पा
एहवाले-रफ्तगाने-अदम किस से पूछिए
ताबे-समाअ रखते नहीं गोशे-नक़्शे-पा
गुज़री 'वफ़ा' जो मुझ पे रहे-कूए-दोस्त में
शाहिद हैं उस के दीदाए-ख़ामोशे-नक़्शे-पा