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कूकड़ी सूत काचैरी / मोहम्मद सद्दीक

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कूकड़ी सूत काचैरी
धावरो मोल करवालै
डगर है डोर चरखै री
मजलरी तोल करवालै
ताकळो है घणो तीखो
मिनख री जूण बिलमालै
बैठज्या। सूत सुळझालै।
चणै कद भाड़ फोड़ी है
गादड़ां गांव कद लूटया
मिनख री आंख फोड़ी है
फलकरा चांद कद टूट्या
चींतणो छोड चीखतो रै
जीतणो त्याग हार तो जा।।

ठिठकतो जा टसकतो रै
सरकतो जा सिसकतो रै
निवड़तो जा तरसतो रै
बिडरता जीव कुण पालै
बैठज्या सूत सुळझालै
बिलखती जूण बिलमालै।।

बिखरतो जा बिगसतो रै
उमसतो जा उमंगतो रै
निसरतो जा निखरतो रै
डगर सब डोर चरखै री
मजल रो मोल करवा लै।