भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कूका बसंत / शैलजा सक्सेना
Kavita Kosh से
1
सूरज आजा
हिम को भगाने को,
रश्मि-दंड ला !
2
कूका बसंत
क्यारियाँ मुस्कुराईं
महकी हवा।
3
रोने भी दो न !
क्यों चिपकाऊँ व्यर्थ,
मुस्कान झूठी!
4
पहाड़ खड़ा-
धरा- आकाश बीच
जैसे ठहाका!
5
भरी झील ज्यों
धरा की नम आँखें
ताकें आकाश!
6
भँवरे सुनाए
मधु-पत्र पिया का
हवा मुस्काए !
7
तुम्हारा प्यार
खोलता अनदिखे
ज्योति के द्वार!
8
याद- बारिश
भीगता मन हुआ
मन भर का।
9
झरने बच्चे,
पहाडों के कंधों से
उतर भागे।
10.
भाग्य- रेखा से
धरा की हथेली पे
पेड़ की जडें।
11
हज़ारों डर,
खँरोंचते मन को
घायल तन।
12
गोरी लजाए
फूलों का रंग तक
लाल हो जाए।
13
शब्द- मीनारें
छिपाती हैं चेहरे
है प्यार कहाँ?
14
क्षणिक मृत्यु
रोज़ चली आती है
नींद बनके!