भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कूज़ागर के घर उम्मीदें आयी हैं / अमित शर्मा 'मीत'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कूज़ागर के घर उम्मीदें आयी हैं
मिट्टी के पुतले में साँसें आयी हैं

घबरा कर बिस्तर से उठ बैठा हूँ मैं
नींद में फिर ख़्वाबों की लाशें आयी हैं

किसने दस्तक़ दी है मेरी पलकों पर
आँखों की दहलीज़ पर यादें आयी हैं

ख़्वाब में उसको रोते देख लिया था बस
मन में जाने क्या-क्या बातें आयी हैं

आँखें सुर्ख़ दिखीं तो मैंने पूछ लिया
उसका वही बहाना आँखें आयी हैं

इक तकिये पर मैं औ' मेरी तन्हाई
ऐसी जाने कितनी रातें आयी हैं

रिश्तों का आइना कब का टूट चुका
मीत के हिस्से केवल किरचें आयी हैं