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कूबलो ठूंठ : एक लखाव / सांवर दइया
Kavita Kosh से
पीळीयै में पड़ी
मांदी मा दांई
रेत
गळियोड़ै गोडां आळै
अणकमाऊ बाप दांई
खेत
इणी खेत में
सांस टूटतै री आस दांई
कमाण हुयोड़ो ठूंठ
ठूंठ सूं निकळियोड़ी दो डाळां
आंख्यां आगै पसरै दीठाव
जाणै हाथ पसार र
मांगतो हुवै कोई कूबलो-
रूतराज !
कीं तो म्हैर करो म्हांरै माथै ई !