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कूस तरैया हे गौरा सुतलि ओछाए / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में एक मनोरंजक प्रसंग का वर्णन है। एक दिन रात को गौरी जमीन पर सोई हुई थीं। चुपके से शिवजी आये और उन्होंने किवाड़ खिसकाकर भीतर प्रवेश करने की कोशिश की। गौरी को कुत्ते की शंका हुई और वह कुत्ते को दुतकार कर भगाने लगी। इसी बीच महादेव को देखकर गौरी लज्जित हो गई। रात में सोते समय स्थान को लेकर दोनों में मतभेद हो गया। शिव रूठकर घर से ‘माँहुर देश’ चले गये और वहीं संध्या से उन्होंने विवाह कर लिया। गौरी पता लगाकर पीछे से वहाँ पहुँची। शिव ने संध्या को छिपा दिया। गौरी संध्या को गाली देने लगी और उसने उसे पुत्रहीन होने का शाप दिया। संध्या ने गौरी से प्रार्थना करते हुए कहा- ‘मुझे माफ कर दो। मैं दासी बनकर रहूँगी तथा तुम्हारे पुत्र गणपति को खेलाया करूँगी।’

कूस तरैया<ref>चटाई</ref> हे गौरा सुतलि ओंछाए<ref>बिछाकर</ref>, कौने पापी फेरल<ref>बंद कर दिया; हिलाया</ref> केबाड़ हे॥1॥
दूर छूछू<ref>कुत्ते या बिल्ली को भगाने के लिए होने वाला प्रयोग; किसी को हटाने के लिए तिरस्कारपूर्वक प्रयोग, जिसका अर्थ होता है- ‘दूर हो’</ref> दूर छूछू कुकरा बिलाय, महादेबें फेरल केबाड़ हे।
एति गोड़ी<ref>इतनी बड़ी</ref> भेलि हे गौरा बुधिओ भी गियान, महादेबें फेरल केबाड़ हे॥2॥
घुरि सूतू फिरि सूतू, साँकरि भेल मोर सेज हे।
सेहो सुनि महादेब घोड़ा झिंझिर<ref>जोन लगाम बाँधना</ref> बाँधल, चलि भेलै माँहुर देस हे।
हे संझा कुमारी महादेब, कैल<ref>किया</ref> बिहाय हे॥3॥
मलिया चुकिया दही जनमाउल<ref>जमाया</ref>, चलि भेलै माँहुर देस हे।
दही लैले दूध लैले भौजो हे बहिनो, माँहुर कैसन बाजन बाजे हे॥4॥
एति गोड़ी भेलि हे गौरा, बुधियो नी गियान, महादेब केल गियान हे।
ऐंगना बोढ़ायते<ref>बुहारती हुई</ref> तोहें सलखो गे चेरिया, तोर घरे इसर जमाय हे॥5॥
आगु भै महादेब संझा नुकाबल, पाछु भै जोरल बाँह हे।
मरिहौं गे संझा तोर जेठो भाइ, होइहो कोखि बिहून<ref>निःसंतान</ref> हे॥6॥
गनपति पुतर हे गौरा गोदी खेलइहों, होबौ हमें दासी तोहार हे॥7॥

शब्दार्थ
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