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कृपया ठुँग न मारें -3 / नवनीत शर्मा

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वहाँ कोई फ़र्क़ नहीं रहता
मूँगफली और सूरजप्रकाश में।
उनके छाबे में
सौ करोड़ से ज़्यादा मूँगफली
जिसके ख़ूब उतरते हैं छिलके।
मिलते हैं पुलों/घाटियों में,
कई बार बिना बताए दफ़ना दिये जाते हैं
छिलकों समेत कई दाने।
सूरज प्रकाश!
जहाँ से यह सब होता है
वह ठुँग मारने का
मंज़ूरशुदा स्थल है
इसी लिए कईयों के चेहरों पर
न आने वाला कल है।
तुम अपने छाबे की
अराजकता रोके हुए हो।
पर रोटी सबको प्यारी है
संसद से ज़्यादा तुम्हारे छाबे की
ईमानदारी है।