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कृपया ठुँग न मारें -5 / नवनीत शर्मा

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सूरजप्रकाश !
बेशक अँधेरे कोने में
लगे छाबे से दूर
दिखते हैं संबंधों के कोण
पर यह वक़्त,अपने
होने पर संताप
करने का नहीं।
देखा नहीं तुमने?
एक पल पहले शराबी की ट्रक से
कुचली गई
गर्भवती कुतिया
के जिस्म से बचकर
निकल रहे हैं
बाकी वाहन ।
बेशक तुम्हारे सपने
क़द की चिंता की
‘ठुँग’ के शिकार हैं
स्कूलों में पढ़ाए जाते
सब विषय बेकार हैं।
अन्यथा इतना बुरा नहीं होता
छाबे पर बैठना कि
मूँगफली के छिलके टूटने का
डिग्रियों को ग़म हो जाए।
तुम गल्ले पर रोज़
 जगाना अगरबती
क्या मालूम आसपास की
सड़ाँध कुछ कम हो जाए