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कृपा बिनु तुम लगि कब को आवै / स्वामी सनातनदेव

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राग धनाश्री, धमार 26.6.1974

कृपा बिनु तुम लगि कब को आवै।
जबलौं द्रवहु न दयासिन्धु तुम दीन-मीन कैसे गति पावै॥
हो रसमय हिम-सिन्धु मनहुँ तुम, जहाँ जीव जलचरहुँ न जावै।
कृपा-भानुसों द्रवहु जब हि तुम, तबहि जीव रति-रस कछु पावै॥1॥
जड़ता-जाड़ी जाय न जबलौं, तबलौं किमि हिय-हिम<ref>हृदयरूपी बर्फ</ref> विलगावै।
तुव करुनासों द्रवत हियो जब तब तुममें घुल-मिलि रस पावै॥2॥
तुम हिम-सिन्धु हियोहूँ हिम-कन, हिमसों हिम मिलिहूँ न मिलावै।
कृपा-भानुसों द्रवहिं दोउ जब, तब रससों रस मिलि रस पावै॥3॥
यों जब होय सुरसमय जीवन, तबहि जीव रस-केलि रमावै।
यासों स्याम कृपा बल ही सों रस-कन मन रस-सिन्धु समावै॥4॥

शब्दार्थ
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