भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कृष्णकाय सड़कों पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कृष्णकाय सड़कों पर
सभ्यता चली है

यौवन-जरा में अनबन
भगवा-हरा लड़े हैं
छोटे सड़क से उतरें
यह चाहते बड़े हैं

गति को गले लगाकर
नफ़रत यहाँ फली है

है भागती अमीरी
सड़कों के मध्य जाकर
है तड़पती ग़रीबी
पहियों के नीचे आकर

काली इसी लहू से
हर सड़क हर गली है

ओ शंख-चक्र धारी
अब तो उतर धरा पर
जो रास्ते हैं काले
उनको पुनः हरा कर

कब से समय के दिल में
यह लालसा पली है