भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कृष्णविवर / प्रवीण काश्‍यप

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पैशाची कृष्णविवरमें डूबैत एक बालचन्द्र,
अटृहास करैत अछि तइओ,
अपन मृत्यु केँ दैत अछि चुनौती
अदृष्य कृष्णविवर सभक उदरमे,
हजारो हजार ग्रह-उपग्रह-तारा।
संवेदनशून्य तारकीय मुखमे,
प्रवेश करैत चलि जा रहल अछि,
लाखो लाख जीवन,
मुदा मृत्यु सँ पहिने मरैत नहि अछि।
चलू, ओतहु एक संसार हम बसाबी।