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कृष्णानन्द कृष्ण / रामकिशोर प्रसाद श्रीवास्तव
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कृष्णानन्द कृष्ण
सुबह के उमेद प
सिकुड़ गइल बा धरती
सिमट गइल आसमान
लागत बा, नाप लेले बा
फेरु कवनो वामन
तीने डेग में, धरती अउर आसमान,
ओसहीं
जइसे अभाव के अजिगर छाप लेले बा
गेंडुर मार के गरीव आ अलचार आदमियत के।
जिनगी के दिया
जर रहल बा भुक-भुक
ऊब, घुटन आ अकुलहट का बीचे।
अभाव के करिया नागिन
चउर लेले बिया पूरा तरे
आदमी हो गइल बा चेतना-शून्य
जइसे ओकरा गतर-गतर में
मार देले होखे लकवा।
आदमी ढो रहल बा
जीयत मुरदा दे हके
एह उमेद प
कि अगिला सुबह सुख के होई।