कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 16
थी पास में वस्तु खाने की,
सब की सब तुमने खालिनी |
जब माँगा तुम से हमने भी,
झूठी कह बात छुपा लीनी |
भ्रम हटा सुदामा के दिल का,
मन ही मन में हर्षाते थे,
वह चावल की थी बंधी हुई,
गठरी को बगल दबाते थे |
संदीपन गुरु की प्रभु, सकल सुनाई बात |
हँस बोले भावज सखा, क्या भेजी सौगात ||
झट लाओ अब देरी न करो,
वही हाल करो न सखा प्यारे |
जो पहले से कर गुजरे हो,
नहीं इनमें सार सखा प्यारे |
मीठी मीठी बातों से जब,
मोहन ने गठरी छीन लिया |
कुछ चावल बिखरे पृथ्वी पर,
हाथों से अपने बीन लिया |
पाते थे बीन बीन चावल,
यह देख सभी जन हँसते थे,
देखा हमने यह वही सखा,
जिसका दम हरि नित भरते थे |
कैसे कंगाल देश का है,
होगा वहाँ कोई रंक जिला |
सौगात बड़ी चावल की है,
न और न कोई चीज मिला |
माया का वैभव संपन्न,
प्राणी कंगाल कहाँ जाने |
ऐसे ही इन चावल का,
बिन प्रेमी हाल कहाँ जाने |