कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 20
== व्यथा और चिंता ==
खोये हैं बाल बच्चे तांकी तो खबर नाहीं,
भोली अरु भाली मेरी ब्राह्मणी विचारी है |
जाऊं कहाँ हेरन को पृथ्वी उनचास कोटि,
याही को विचार सारी हिम्मत मैं हारी है |
कौन देश कौन गाँव कहाँ को ठिकानो पुछू,
कौन जन बतावे मुझे हँसे संसारी है |
कहता सुदामा, धन्य द्रव्य दियो मुझे,
ऐसी करी खारी ईश, खोई मम नारी है |
मेरी वह टपरी गरीबनी विचारी नारी,
क्या करूँ हेरुं कहाँ ना चाहिये अटारी है |
वस्त्र कछु चाहिये ना भूषण अलंकृत,
चाहिये न द्रव्य धाम विद्या दस चारी है |
आनाद सुख सम्पति, चाहिये न बड़प्पन,
मैं तो हूँ गरीब हिय मूर्ति तिहारी है |
कहता सुदामा, धन्य द्रव्य दियो मुझे,
ऐसी करी खारी ईश, खोई मम नारी है |
गया व्यर्थ धन लेने को,
वापस मैं ठगा गया सारा |
यह हाल देख द्विज घबराये,
मन सोच हुआ अति से भारा |
इधर उधर चक्कर मारे,
निज झोपड़ी की भी आस नहीं |
कहते थे गजब हुआ यह क्या,
होता मन में विश्वास नहीं |
अनायास उसही क्षण में,
ब्राह्मणी ने देखा बारी में |
घबराये इधर उधर डोले,
स्वामी को देखा घ्यारी में |