भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केओ ने बुझाबय किए शिव शंकर / मैथिली लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

केओ ने बुझाबय किए शिव शंकर रुसला अपना मन मे
कार्तिक मास गगन उजियारी, बिछुरल सोच भई मन मे
कार्तिक गणपति कोरा शोभथि, एकसरि रहब कोना वन मे
अगहन अधर अंग रस छूटय, अधिक संदेह होअय मन मे
छोड़ि गेलाह शिव मृगछाला, लइयो ने गेलाह अपन संग मे
पूस मास पाला तन पड़ि गेल, चहुँदिस छाय रहल वन मे
धरब भेष योगन के शिव बिनु, शिव शिव रटन लगाय मन मे
सिहरि सिहरि सारी रैन बिताओल, पिया बिनु माघ बड़ा रगड़ी
भेटथि देव सखा हमर जँ, पूरय मन अभिलाष सगरी