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केकराही अंगना चानन गाछ चानन मंजरी गेल रे ललना / मैथिली

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

केकराही अंगना चानन गाछ चानन मंजरी गेल रे
ललना रे ककर धनि गर्भ स सुनि मन हर्षित रे।
बाबा केरा अंगना चानन गाछ, चानन मंजरी गेल रे
भईया के धनि गर्भ स सुनि मन हर्षित भेल रे।
घर के पछुअरवा में जोलहा कि तोंही मोरा हीत बसु रे
ललना रे बिनी दहिन सोना के पलंगवा होरीला सुतायब र।
ओही कात सुत सिर साहब और सिर साहब रे ललना रे
अई कात सुतु सुकुमारी बीच में होरिला सुतु रे।
हटि हटि सुतु सिर साहब और सिर साहब रे
ललना बड रे जतन केरा होरिला घाम से भीजल रे ।
सासु के धर्म स होरिला अपना कर्म स ललना रे
आहां के चरण स होरिला घाम से भीजल र।


यह गीत श्रीमती रीता मिश्र की डायरी से