भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
केकरा क जनमल राम, किनका भरथ लाल हे / अंगिका लोकगीत
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
केकरा क जनमल राम, किनका भरथ लाल हे।
ललना रे, किनका लछुमन सतरुहन, घर घर बधैया बाजै हे॥1॥
कोसिला क जनमल राम, कंकई क भरथ लाल हे।
ललना रे, सुमितरा क लछुमन सतरुहन, कि घर घर बधैया बाजै हे॥2॥
केओ लुटाबे अन धन सोनमा, त केओ रथ पलकिया न हे।
ललना रे, केओ लुटाबै हथकँगना<ref>हाथ का कंगन</ref>, कि किनका घर बधैया बाजै हे॥3॥
कोसिला लुटाबे अन धन सोनमा, कंकइ रथ पलकिया न हे।
ललना रे, सुमितरा लुटाबै हथकँगना, दसरथ घर बधैया बाजै हे॥4॥
शब्दार्थ
<references/>