केकरोॅ भाग सिकन्दर? / कस्तूरी झा 'कोकिल'
नर-नारी के जीवन सम छै,
एक दूसरा केॅ आधार।
अंतहीन विरह भेला सें,
दोनों के जीवन बेकार।
घुट-घुट मरना, घुट-घुट जीना
दोनों के जीवन वीरान।
चहल-पहल सपनों लागै छै।
ऐन्हों जिनगी केॅ की काम?
जै में केवल रोना-धोना
काँटा भौंकै द्वारा मकान।
केॅ सुनवैया राम कहानी?
कौनेॅ हिन्नें दे छै ध्यान।
हारी-पारी तारा गिनना,
करवट बदली करोॅ विहान।
छटपटाय केॅ दिन गुजरे छै।
जिन्दा लाश छिकै इन्सान।
नारी ऊर्जा दे वाली छै,
मूर्दा में फूकै छै जान।
नारी बिना पुरुष छै पंगू
हर्श दूर छै कल्पित प्राण।
पुरुश बिना नारी केॅ जिनगी
मरुभूमि सपना उद्यान।
ओकरा सदा अमावश घेरे
नैं चमकै छै नभ में चान।
स्वर्गारोहण जिनकेॅ पैहिनें
हुनकोॅ भाग सिकन्दर छै
धरती पर मुर्दा जिन्दा छै
डाल से छुटलेॅ बन्दर छै।
झंझरी नैया बीच समुंदर
नै पतवार खेबैया छै।
बम भोला केॅ एक सहारा
हुनकेॅ हाथें नैया छै।