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केतो करौ कोई,पैए करम लिखोई ताते / सेनापति

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केतो करौ कोई,पैए करम लिखोई, ताते,
                  दूसरी न होई,उर सोई ठहराईए.
आधी ते सरस बीति गई बरस,अब
                  दुर्जन दरस बीच रस न बढाईए.
चिंता अनुचित, धरु धीरज उचित,
                  सेनापति ह्वै सुचित रघुपति गुनगाईए.
चारि बर दानि तजि पायँ कमलेच्छन के,
                  पायक मलेच्छन के कहे को कहलाईए.