भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केनाँ के करबै! / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुधनी बड़ी सयानी घर में केनाँके करबै शादी?
बहुत गरम बाजार वरऽ केॅ कपसै मैइया दादी।

हुरकुच्चै बुधनी बापऽ केऽ
खौजै लागी लड़का।
कहाँ जाँव, केकरा सँ कहियै!
बिकट सवाल छै बड़का।

हारी पारी लौटे हरदम खर्चा के बर्बादी।
बुधनी बड़ी बयानी घर में केनाँके करबै शादी?
बहुत गरम बाजार वरऽ केॅ कपसै मैइया दादी।

खेत पथार नामे केऽ हमरा
नैं बथान पर बरदा।
बकरी गैया एगो दूगो
डमखोलाकेऽ परदा।

बेटाँ बालाँ राजा समझै, चाहै छै शहजादी।
बुधनी बड़ी बयानी घर में केनाँके करबै शादी?
बहुत गरम बाजार वरऽ केॅ कपसै मैइया दादी।

घर बाहर खतरे खतरा छै,
बेटी जहाँ सयानी।
की गरीब, की पैसा वाला,
एक्के राम कहानी।

जब दहेज के दानव मरतै, अयतै दुनिया आह्लादी।
बुधनी बड़ी बयानी घर में केनाँके करबै शादी?
बहुत गरम बाजार वरऽ केॅ कपसै मैइया दादी।

-अंगिका लोक/ जुलाई-सितम्बर, 2013