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केना काटबऽ रतिया / परमानंद ‘प्रेमी’
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भरलऽ सावनों के अन्हरिया रतिया,
सखिया हे केना काटबऽ रतिया?
मेघा गरजै पानियों बरस
पिया बिना हमरऽ मनमां तरसै
सब सखियां मिलि झूला देखै छै
हमरऽ बलमुवाँ गेलऽ नौकरिया,
सखिया हे केना काटबऽ रतिया?
चारो ओर टर-टर बेंगा बोलै छै
रात अन्हरिया डरो लागै छै
सावनों में सभ्भै के मऽन हरिऐलऽ
एक्के हमरऽ उदास भेलऽ छतिया
सखिया हे केना काटबऽ रतिया?
चिट्ठी लिखि-लिखि मऽन हारि गेलऽ
असरा लगैलों पर तैयों नैं ऐलऽ
दिन-रात अँखिया सें लोर गिरै छ’
बिरहा दुःख की जानै निर्मोहिया,
सखिया हे केना काटबऽ रतिया?