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केन्द्र / केदारनाथ अग्रवाल
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एक
लकीर ने लकीर को खा लिया
इसलिए कि केन्द्र ग्रहण में था
और, अँधेरा था
दो
केन्द्र
परिधि में चला गया है
और वृत्त में सागर
जमीन पर सवार है
तीन
केन्द्र
परिधि के बाहर नहीं देखता
और परिधि के बिंदु
परिधि के भीतर और बाहर
सब तरफ देखते हैं
चार
व्यास हो या अर्द्धव्यास
केन्द्र के अंकुश हैं
केन्द्र में नथे वे
परिधि के बिंदुओं को नाथे हैं
पाँच
बाहर नहीं
वृत्त के भीतर है दुनिया
समय का वृत्त
न अतीत है-न वर्तमान-न भविष्य
छः
केन्द्र, न रहा केन्द्र
जब वृत्त सीधा हुआ
बिंदुओं की सड़क हुआ
सात
वृत्त में कैद केन्द्र
घर का स्वामी है
लेकिन नपुंसक है
रचनाकाल: १७-१०-१९६७