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केन, मैं और तुम / केदारनाथ अग्रवाल

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सुबह में डूबी मुसकान
मुसकान में डूबी केन
केन में डूबा मैं
मुझमें डूबा सौंदर्य
सौंदर्य में डूबी तुम
तुम में डूबा दिग्गेश
आदि से अंत तक
यही है परिवेश

रचनाकाल: ०५-१०-१९६५