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केरल में भोपाल / राधावल्लभ त्रिपाठी

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भोपाली युवक बहुत गोरे रंग का
पत्नी उसकी
चमकते मेदुर श्याम वर्ण की
केरल कन्या
मैंने दोनों को देखा
केरल एक्सप्रेस की शायिका में सामने बैठे।
निश्चिन्त बतियाते।
सटे परस्पर धीमे-धीमे
कभी अविरल कपोल होकर

उसने कुछ शरारत की
कृष्णशार सरीखी आँखों की
इसकी पुतलियाँ कोरों तक
आईं घनीं बरौनियों के किनारे तिर
और कहा उसने धत-
मैंने देखा केरल में घुलता भोपाल।