भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
केलि की राति अघाने नहीँ दिन ही मे / मतिराम
Kavita Kosh से
केलि की राति अघाने नहीँ दिन ही मे लला पुनि घात लगाई ।
प्यास लगी कोउ पानी दै जाउ योँ भीतर बैठि कै बैन सुनाई ।
जेठी पठाई गई दुलही हँसि हेरि हरै मतिराम बुलाई ।
कान्ह के बोल पे कान न दीन्हो सुगेह की देहरी पै धरि आई ।
मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।