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केवल अपने लिए / राजमणि मांझी 'मकरम'
Kavita Kosh से
मैं स्वार्थी हूँ
अपनी बीवी की गाँठ खोलकर
लूट लेता हूँ
उसकी बची-खुची अस्मिता
जबरन उधार माँगता हूँ
उस बनिए से
जो रोज़ खीझकर मुझे भगा देता है
उधार देने से इनकार करता है
मगर अपने स्वार्थ के लिए
हाथ जोड़ लेता हूँ
अपनी बेटी को फुसलाकर
उसका सन्दूक माँगकर
चुरा लेता हूँ उसके कुछ सपने
सहेजे हुए कुछ अरमान
और उसके छोटे-से भविष्य पर
पानी फेर देता हूँ
बेटे का गुल्लक फोड़ने में भी
मैं नहीं हिचकिचाता
जहाँ से भी हो, कैसे भी हो
अपना स्वार्थ पूरा कर लेता हूँ
भले ही उसके लिए / कितनी गालियाँ
कितनी ही लानतें सुननी पड़ें
पर अपना स्वार्थ बटोर लेता हूँ।