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केवल झूठ बिका / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
इस दुनिया को कब भायी है
मन पर कोई क्रीज
जीवन के सच बतलाते हैं
दाग पड़े गहरे
मगर बने प्रोफाइल पिक्चर
दाग मुक्त चेहरे
पतझड़ बीता लेकिन मन ने
बदली नहीं कमीज
बाजारों में जब भी बेचा
केवल झूठ बिका
सच, विज्ञापन के पीछे ही
हरपल रहा छिपा
चटक-मटक कवरों के नीचे
बिकी पुरानी चीज
जब भी दुख अपने दिखलाये
चुभती कील मिली
मुस्कानों के ऊपर में
मँडराती चील मिली
चुप रहना, सहना सिखलाया
ओढ़े रहे तमीज