केवल मेरे पास बसो तुम!
एक मुकुर में सौ-सौ मूरत,
सुकुतूहल मैं देखूँ सूरत;
मीड़ित साँसें गमक बनें जब,
रोयें-रोयें रमक, हँसो तुम!
अचपल मेरे रसिक शिलीमुख
रूपविचुंबित; लीन सुधा-सुख,
चपल किरन के संग न बहकें
और कसो, कुछ और कसो तुम!
काफी है आधी ही चितवन,
सो जाएगा विभ्रम का मन;
कोजागरा रहे मेरी भी,
सुध के मिस यदि सहज डँसो तुम!