भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
केवल शब्द ही / पुरुषोत्तम अग्रवाल
Kavita Kosh से
शब्दों को नाकाफी देख
मैं तुम तक पहुँचाना चाहता हूं
कुछ स्पर्श
लेकिन केवल शब्द ही हैं
जो इन दूरियों को पार कर
परिन्दों से उड़ते पहुँच सकते हैं तुम तक
दूरियां वक्त की, फ़ासले की
तय करते शब्द-पक्षियों के पर मटमैले हो जाते हैं
और वे पहुँच कर जादुई झील के पास
धोते हैं उन्हें तुम्हारी निग़ाहों के सुगंधित जल में