भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केशवाचें ध्यान धरूनि अंतरीं / गोरा कुंभार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

केशवाचें ध्यान धरूनि अंतरीं।
मृत्तिके माझारीं नाचतसे॥ १॥

विठ्ठलाचें नाम स्मरे वेळोवेळ।
नेत्रीं वाहे जळ सद्गसदीत॥ २॥

कुलालाचे वंशीं जन्मलें शरीर।
तो गोरा कुंभार हरिभक्त॥ ३॥