केसर के सतसंग में, बसी रहे चाहे रोज ।
प्याज-बास जाती नहीं, चाहे सो करले चोज ।।
चाहे सो करले चोज नीच ऊँचे ना होवैं ।
खर तुरंग ना होय चाहे तनु तीरथ धोवैं ।।
गंगादास जब नाक नहीं क्या सोहैं बेसर ।
किसी जतन से प्याज कदी होती ना केसर ।।
केसर के सतसंग में, बसी रहे चाहे रोज ।
प्याज-बास जाती नहीं, चाहे सो करले चोज ।।
चाहे सो करले चोज नीच ऊँचे ना होवैं ।
खर तुरंग ना होय चाहे तनु तीरथ धोवैं ।।
गंगादास जब नाक नहीं क्या सोहैं बेसर ।
किसी जतन से प्याज कदी होती ना केसर ।।