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केसर के सतसंग में, बसी रहे चाहे रोज / गंगादास

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केसर के सतसंग में, बसी रहे चाहे रोज ।
प्याज-बास जाती नहीं, चाहे सो करले चोज ।।

चाहे सो करले चोज नीच ऊँचे ना होवैं ।
खर तुरंग ना होय चाहे तनु तीरथ धोवैं ।।

गंगादास जब नाक नहीं क्या सोहैं बेसर ।
किसी जतन से प्याज कदी होती ना केसर ।।