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केसर चंदन से / प्रेमलता त्रिपाठी

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लोहित प्रातः भानु लुभाता, वंदन से।
छिटकी आभा नभ तल शोभित, रंजन से। ।

सांध्यगीत रचती नवकलिका, मीत चली।
द्वार देहरी नैन निहारे, अंजन से।

ताम्रवर्ण अस्ताचल मोहक, सूर्य ढला,
अश्वारोही सत सतरंगी, स्यंदन से।

पुलक उठा गगनांचल जैसे, मत्त मगन,
संत दिगंतर सुरभित केसर, चंदन से।

हुई धूसरित सकल दिशाएँ, प्रेम सरस,
हंत पुकारे धेनु वत्सला, क्रंदन से।