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केसर रँग रँगे आँगन / शकुन्त माथुर
Kavita Kosh से
केसर रँग रँगे आँगन गृह -गृह के
टेसू के फूलों से पीले
भीतों पर रँग पड़े दिख रहे
चित्र छपे ज्यों सुन्दर - सुन्दर
ऊँचे ढेर लगे काँसे की थालियों में
लाल हरे पीले गुलाल के।
धूम मचाती होली आई
सखि, डालें कलसी भर जल की
धार बहाएँ सिर से कटि तक
भीज गए बारीक वसन सब
जिनसे निकले गोरे तन की आभा हलकी।
सुन्दरियों के गोल बदन
लिपटे गुलाल से
ज्यों सूरज पर सन्ध्या - बादल
ज़ोर जमा खींचे पिचकारी
मुरकी जाए नरम कलाई
छोड़ फुहारें रँग सब डालें
बजें चूड़ियाँ
फिसले साड़ी
मसल गए रँग
मसल गए तन
मसक गई अब मूठी गोरी
किरण उतरकर नभ से आई
आज खेलने को ज्यों होरी।
उड़ आया मद भरा समीरण
उड़े हरे पीले गुलाल सँग
केसर रँग रँगे हैं आँगन
टेसू के फूलों से पीले।