भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केहू जाल काटता, केहू काल काटता / लक्ष्मण पाठक 'प्रदीप'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

केहू जाल काटता, केहू काल काटता,
केहू सुतल-सुतल पराया के माल काटता।

केहू सानी काटता, केहू धानी काटता,
केहू परल-परल हीक भरि चानी काटता।

केहू नर्मे काटता, केहू गर्मे काटता,
जेका अँखिया में हया बा, ऊ शर्मे काटता।

केहू सोलह, केहू बीसी, केहू तीसी काटता,
केहू ढललो पर दाँत से बतीसी काटता।

केहू सुखे काटता, केहू दुखे काटता
केहू दिन-रात खटलो पर भूखे काटता।

केहू दिने काटता, केहू राते काटता
केहू झलर-मलर नीमनो के बाते काटता।

केहू पेटे काटता, केहू टेंटे काटता
केहू मीठे छुरा दुखिया के घेंटे काटता।