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केहू जाल काटता, केहू काल काटता / लक्ष्मण पाठक 'प्रदीप'
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केहू जाल काटता, केहू काल काटता,
केहू सुतल-सुतल पराया के माल काटता।
केहू सानी काटता, केहू धानी काटता,
केहू परल-परल हीक भरि चानी काटता।
केहू नर्मे काटता, केहू गर्मे काटता,
जेका अँखिया में हया बा, ऊ शर्मे काटता।
केहू सोलह, केहू बीसी, केहू तीसी काटता,
केहू ढललो पर दाँत से बतीसी काटता।
केहू सुखे काटता, केहू दुखे काटता
केहू दिन-रात खटलो पर भूखे काटता।
केहू दिने काटता, केहू राते काटता
केहू झलर-मलर नीमनो के बाते काटता।
केहू पेटे काटता, केहू टेंटे काटता
केहू मीठे छुरा दुखिया के घेंटे काटता।