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केहे लारे देनाँ ऐं सानूँ / बुल्ले शाह

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केहे लारे देनाँ ऐं सानूँ,
दो घड़िआँ मिल जाईं।
नेड़े वस्से थाँ ना दस्से,
ढूँढ़ा कित वल जाहीं।
आपे झाती पाई अहमद,
वेक्खाँ ताँ मुड़ नाहीं,
आख ग्यों मुड़ आयो नाहीं,
सीने दे विच्च भड़कण भाई<ref>आग</ref>।
इकसे घर विच्च वस्सदीआँ रस्सदीआँ,
कित वल्ल कूक सुणाईं।
पांधी जा मेरा देह सुनेहा।
दिल दे ओल्हे लुकदा केहा!
नाम अल्लाह दे ना हो वैरी,
मुक्ख वेक्खण नूँ ना तरसाईं।
बुल्ला सहु की लाया मैनूँ,
रात अद्धी है तेरी महिमा।
औझ़ बेले सभ कोई डरदा,
सो ढूँढ़ा मैं चाईं चाईं।
केहे लारे देनाँ ऐं सानूँ
दो घड़िआँ मिल जाईं।

शब्दार्थ
<references/>