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के-के जैबे गंगा पार / अमरेन्द्र

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कन्ना गुजगुज महुआ के डार, के-के जैबे गंगा पार
गंगा पार में मेला लागतै, पौंरके नांखी थियेटर ऐतै
फेरू बजरंगी काका के चलतौ वैठां राग मलहार
कन्ना गुजगुज महुआ के डार, के-के जैबे गंगा पार ?

अबकी तेॅ नौटंकी संग-संग, लानतै सौर-सिनेमा भी रंग
तरऊपरी पर ऊपर-नीचे जी भर करबै अबकी बार
कन्ना गुजगुज महुआ के डार, के-के जैबे गंगा पार ?

टिकुली, पाउडर, फीता लेबै, हिरिया केॅ जाय केॅ दिखलैबै
चिढ़तै भीतरे-भीतर देखियैं, देखतै जखनी मोती के हार ।
कन्ना गुजगुज महुआ के डार, के-के जैबे गंगा पार ?

भागलपुर के बाबू ऐतौ, देखियें की रं आँख दबैतौ
बचियो केॅ तोहरा सब रहियै, की रं हाँकतौं मोटर कार
कन्ना गुजगुज महुआ के डार, के-के जैबे गंगा पार ?

शहरोॅॅ सें जादूगर ऐतै, आँख मूंदी केॅ नाम बतैतै
सूना में चल पूछियै लेबैµकहिया उठतै बाबू के भार
कन्ना गुजगुज महुआ के डार, के-के जैबे गंगा पार ?