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के आंख्या पै धरी ठेकरी ईब लग नहीं पिछाणी / मेहर सिंह

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वार्ता- माली के समझाने पर रानी का कुछ चित ठिकाने हुआ उसने धीरज धरी और केले के पते तोड़कर अपने बेटे की लाश को उसमें लपेटकर शमशान भूमि की राह ली। रानी ने ईंधन गोसा इकट्ठा करके चिता में अग्नि चेतन कर देती है। उधर हरिश्चन्द्र मुर्दाघाट पर चौकीदारी करता था। कालिया भंगी का असूल था कोई भी मुर्दा जलाए उससे सवा रुपया ले ले। हरिश्चन्द्र नहा धोकर ईश्वर के ध्यान में बैठा ही था कि उसे शमशान भूमि से धुआं सा नजर आया वह तुरन्त वहां पहुंचा तो क्या हुआ-

इस रागनी में 16 कली हैं हम सिर्फ 12 कली ही प्राप्त कर सकें हैं। इस रागनी के राजा के बोल तो पंडित लखमीचंद के हैं और रानी के बोल श्री मेहर सिंह जी के हैं-

यो रोहतास कंवर तेरा बेटा मैं मदनावत राणी
के आंख्या पै धरी ठेकरी ईब लग नहीं पिछाणी।टेक

रानी- तू सोचण लाग्या अपणे मन में बिल्ली आला दा सै
जै मैं तेरे तैं दगा करूं तो उस ईश्वर कै न्याया सै
जितणी जाणूं उतनी कहदी आगै तेरी सलहा सै
लादे आग चिता में साजन के तेरा बेटा ना सै
के पाछै तै लाई पूत नै करकै नै बेइमानी।1।

रानी- ठा कै लाश बगा दी साजन के तनै बेरा ना था
इस लड़कै नै दाग देण का के हक तेरा ना था
दुखियारी का पूत मर्या सै घर और डेरा ना था
जै तूं पिता बणन तै नाट गया तै यो मेरा बेटा ना था
लहाश बगा दी कहण लागग्या परै मरले बेटा खाणी।2।

राजा-जब तक इन्द्र ना बरसै तै धरती पै सूकका सै
मरघट का कर दिये बिना सुत फूंकणा ओक्खा सै
न्यूं तै मैं भी जाण गया कोए हवा का झोंका सै
वरूणा नदी पै नाटी थी आज मेरा भी मौका सै
तनै वरूणा नदी पै ना घड़ा ठुवाया में भरण गया था पाणी।3।

रानी- न्यूं तै मैं भी जाण गई किस्मत ने दे दिया होड़ा
और किसै का दोष नहीं मनै भाग जाण कै फोड़्या
नेम धर्म पुन दान करण में कदे ना हाथ सिकोड़ा
ईंधन गोसा और लाकड़ी तिनका तिनका जोड़ा
दुनियां म्हं तै मिट चाली या राजा तेरी निशानी।4।

रानी- माफ करो पिया माफ करो मेरै धोरै पिसा ना सै
मेरे जिगर में चोट लागरी छाती कै म्हां घा सै
दो घन्टे होए मर्या पड़या मौका बीत्या जा सै
घर कै आग चिता में दे दे के तनै छोरा खा सै
कर ले चाल्या पुरा जो ल्याया था दाणा पाणी।5।

राजा- मैं सूं हरिश्चन्द्र छत्रधारी ना जांगां प्रण हार कै
सवा रुपया ना पूगै तै धर दे चीर तार कै
इसी कार मनै करणी कोन्या रूक्का जा संसार कै
मैं कै दिन खातर जीऊंगा भंगी का महशूल मार कै
हरिश्चन्द्र ना इसी कार करै पड़ैं गाल जगत की खाणी।6।

रानी- चन्द्रमा से मुखड़े आला मेरा गया था कंवर बाग में,
लड़तै हे फटका ना खाया इतणा जहर नाग में
बेरा ना के लिख राखी सै इस खोटे मेरे भाग में
इस की गैल्यां मरणा दिखै जल कै आज आग में
तूं बेटा फूकण का कर मांगै से के पीर्हा सै बिन छाणी।7।

रानी- फूल तोड़ने गया कंवर मेरा मुंह बटवे से आला
कर्म अगाड़ी चला बाग में नाग लड़ा सै काला
इतनै पहुंची इतनै मर लिया कोन्या लिया सम्हाला
कुणबा तेराह तीन हुया पिया मेरा भी राम रूखाला
इन कांशी के बागां में आज मिटगी तेरी निशानी।8।

राजा- बिन बुझे तनै चिता लगा दी यो काम कर्या चाले का
भंगी का सै ऊत घणा ना ले तरस किसै साले का
सवा रुपया कर का हों सै बुढ़े और बाले का
मेरी पार बसावै कोन्या मैं नोकर सूं काले का
जै तेरे पर तै कर ना लूं तै होज्या धर्म की हाणी।9।

रानी- जाण गई मैं जाण गई मेरी तकदीर फूट ली
अन्न पाणी इस धरती पर तै मेरी दोनूं चीज उठ ली
न्यूं तै मैं भी जाण गई मेरे हाथ तै डोर छूट ली
इन कांशी के बागां में आज मेरी माया लूट ली
इन कांशी के बागां में आज पड़गी विपता ठाणी।10।

रानी-दुख विपता में दिखणा लागी रात अन्धेरी दिन की
केले कै म्हां लाश ल्हकोरी लगह समझ........की
दमड़ी मेरे पास नहीं सै जै बूझै मेरे मन की
एक चीर में नहीं सरै तै खाल तार ले तन की
मेहर सिंह नै रो कै सुणा दी अपनी राम कहाणी।11।

राजा- एक तिल भर भी ना घटती जो बेमाता लिखै सै
ले कै कंवर की आड़ बारवली क्यूं गप्ती घा सेकै सै
गुरु मान सिंह की दया हुई बढ़ीया छन्द टेकै सै
तनै न्यूं सोची दे फूक कंवर नै आड़ै कूण देखै सै
लखमीचन्द नै लगी भलोवण बोल कै मीठी बाणी।12।